भद्र योग :
पंच महापुरुष योग में आने वाले शेष चार योग हंस योग, माल्वय योग, रूचक योग एवम शश योग हैं। वैदिक ज्योतिष में भद्र योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार बुध यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात बुध यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में मिथुन अथवा कन्या राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में भद्र योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को युवापन, बुद्धि, वाणी कौशल, संचार कौशल, विशलेषण करने की क्षमता, परिश्रम करने का स्वभाव, चतुराई, व्यवसायिक सफलता, कलात्मकता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है। अपनी इन विशेषताओं के चलते भद्र योग के प्रभाव में आने वाले जातक विभिन्न प्रकार के व्यवसायिक क्षेत्रों में सफल देखे जाते हैं जिनमें पत्रकार, टीवी रिपोर्टर, वकील, जज, प्रवक्ता, सलाहकार तथा विशेषतया वित्तिय सलाहकार, ज्योतिषी, व्यापारी, राजनीतिज्ञ तथा शिक्षक आदि शामिल हैं तथा इस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अपने अपने व्यवसायिक क्षेत्रों के माध्यम से धन तथा ख्याति अर्जित कर सकते हैं तथा इस धन और ख्याति की मात्रा जातक की कुंडली के आधार पर ही होती है। भद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अपनी आयु की तुलना में युवा दिखाई देते हैं तथा इस योग का प्रबल प्रभाव जातक को लंबी आयु भी प्रदान करता है। भद्र योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक सफल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ तथा खिलाड़ी भी बन सकते हैं।
भद्र योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 16वीं कुंडली में भद्र योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में बुध के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में बुध के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में बुध के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में बुध दसवें घर में कन्या राशि में स्थित होते हैं। भद्र योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के दसवें घर में बुध दो राशियों मिथुन तथा कन्या में स्थित होने पर भद्र योग बनाते हैं। इसी प्रकार बुध के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा पहले घर में भी भद्र योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 2 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 8 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 16वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि भद्र योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 16वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है।
भद्र योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 16वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल बुध की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में भद्र योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही भद्र योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में बुध शुभ हों क्योंकि कुंडली में बुध के अशुभ होने से बुध के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी भद्र योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में बुध कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली के सातवें घर में मिथुन राशि में स्थित अशुभ बुध भद्र योग नहीं बनाएंगे बल्कि ऐसी कुंडली मे अशुभ बुध की स्थिति के कारण कोई दोष बन सकता है जिसके कारण जातक के वैवाहिक जीवन तथा व्यवसायिक क्षेत्र में समस्याएं पैदा हो सकतीं हैं। इस लिए किसी कुंडली में भद्र योग बनाने के लिए बुध का कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।
कुंडली में बुध के शुभ होने के पश्चात यह भी देखना चाहिए कि कुंडली में बुध को कौन से शुभ अथवा अशुभ ग्रह प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि किसी कुंडली में शुभ बुध पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव बुध द्वारा बनाए जाने वाले भद्र योग के शुभ फलों को कम कर सकता है तथा किसी कुंडली में शुभ बुध पर दो या दो से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रबल प्रभाव कुंडली में बनने वाले भद्र योग को प्रभावहीन भी बना सकता है। इसके विपरीत किसी कुंडली में शुभ बुध पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली में बनने वाले भद्र योग के शुभ फलों को और भी बढ़ा सकता है जिससे जातक को प्राप्त होने वाले शुभ फलों में बहुत वृद्धि हो जाएगी।
इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ अशुभ योगों अथवा दोषों का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि कुंडली में बनने वाले पित्र दोष, मांगलिक दोष तथा काल सर्प दोष जैसे दोष भद्र योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ योग इस योग के प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकते हैं।
इसलिए किसी कुंडली में भद्र योग के निर्माण तथा इसके शुभ फलों का निर्णय करने से पहले इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित सभी नियमों का उचित रूप से अध्ययन कर लेना चाहिए।
कुंडली के पहले घर में बनने वाला भद्र योग जातक को स्वास्थय, व्यवासायिक सफलता, ऐश्वर्य तथा ख्याति आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है।
कुंडली के चौथे घर में बनने वाला भद्र योग जातक को संपत्ति, वैवाहिक सुख, वाहन, घर, विदेश भ्रमण तथा वयवसायिक सफलता जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है।
सातवें घर का भद्र योग जातक को वैवाहिक सुख, व्यवसायिक सफलता तथा प्रतिष्ठा और प्रभुत्व वाला कोई पद प्रदान कर सकता है।
दसवें घर का भद्र योग जातक को उसके व्यवसायिक क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातक किसी सरकारी अथवा निजी संस्था में लाभ, प्रभुत्व तथा प्रतिष्ठा वाला पद प्राप्त कर सकते हैं।