श्री निर्जला एकादशी पर्व वीरवार 16 जून 2016
जेष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है।
एक ओर जेष्ठ मास की भीषण गर्मी जिसमें सूर्यदेव अपनी किरणों की प्रखर ऊष्मा से मानो अग्नि वर्षा कर रहे हों दूसरी ओर धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं द्वारा दिन भर निराहार एवं निर्जल उपवास रखना।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही नहीं अपितु दूसरे दिन द्वादशी प्रारंभ होने के बाद ही व्रत का पारायण किया जाता है।
अतः पूरे एक दिन एक रात तक बिना जल के रहना वह भी इतनी भीषण गर्मी में यही तो है भारतीय उपासना पद्धति में कष्ट सहिष्णुता की पराकाष्ठा।
निर्जला एकादशी व्रत अत्यधिक श्रम-साध्य होने के साथ-साथ, कष्ट एवं संयम साध्य भी है।
हमारे धर्मग्रंथों में इस पर्व को आत्मसंयम की साधना का अनूठा पर्व माना गया है।
यह एक शारीरिक परीक्षण का दिन भी है जब आप अपनी शारीरिक क्षमता का परीक्षण कर सकते हैं कि क्या आप भूखे-प्यासे एक दिन संयम से निकाल सकते हैं?
एक ओर जहाँ पानी न पीने के व्रत की कठिन साधना है वहीं आम जनता को पानी पिलाकर परोपकार की प्राचीन भारतीय परंपरा भी।
निर्जला एकादशी के दिन पानी के छबील लगाकर अनेक धार्मिक संगठन दिन भर शीतल जल का वितरण करना बड़े पुण्य का कारण मानते हैं।
निर्जला एकादशी को पानी का वितरण देखकर आप के मन में एक प्रश्न अवश्य आता होगा कि जहाँ इस दिन के उपवास में पानी न पीने का व्रत होता है तो यह पानी वितरण करने वाले कहीं लोगों का धर्म भ्रष्ट तो नहीं कर रहे हैं?
लेकिन इसका मूल आशय यह है कि व्रतधारी लोगों के लिए यह एक कठिन परीक्षा की ओर संकेत करता है कि चारों ओर आत्मतुष्टि के साधन रूप जल का वितरण देखते हुए भी उसकी ओर आपका मन न चला जाए।
साधना में यही होता है कि साधक के सम्मुख सारे भोग पदार्थ स्वयमेव उपस्थित हो जाते हैं।
वस्तु प्रदार्थ उपलब्ध होते हुए उनका त्याग करना ही त्याग है, अन्यथा उनके न होने पर तो अभाव कहा जाएगा, अतः अभाव को त्याग नहीं कहा जा सकता।
दूसरी ओर जो लोग व्रत नहीं करते लेकिन गर्मी के कारण आकुल हो जाते हैं और उनको ऐसी स्थिति में एक गिलास शीतल पानी मिल जाता है तो उनकी आत्मा प्रसन्न हो जाती है।
अतः इस उपासना का सीधा संबंध एक ओर जहां पानी न पीने के व्रत की कठिन साधना है वहीं आम जनता को पानी पिलाकर परोपकार की प्राचीन भारतीय परंपरा भी।
निर्जला एकादशी व्रत के बारे में महाभारत में महर्षि वेदव्यास के वचन हैं कि पूरे वर्ष में होने वाली एकादशी जिनमें अधिमास भी सम्मिलित है यदि कोई न कर सके तो भी वह निर्जला एकादशी का व्रत करता है तो उसे सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है।
इसीलिए व्यास जी ने भीम सेन को निर्जला एकादशी व्रत करने की प्रेरणा दी क्योंकि जठराग्नि तीव्र होने के कारण भीमसेन बिना खाए रह ही नहीं सकते थे।
अतः भीमसेन ने वेद व्यास जी की प्रेरणा से इस व्रत को किया।
निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है।