जन्मकुंडली में केतु दूषित हो, दुर्बल हो या अस्त हो तो लहसुनिया पहनना लाभकारी होता है। कुंडली में निम्न बातें हो तो लहसुनिया पहना जा सकता है।
- कुंडली में दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, नवें और दसवें भाव में यदि केतु उपस्थित हो तो लहसुनिया पहनना लाभकारी सिद्ध होता है।
- कुंडली के किसी भी भाव में अगर मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ में केतु हो तो लहसुनिया अवश्य पहनना चाहिए।
- केतु सूर्य के साथ हो या सूर्य से दृष्ट हो तो भी लहसुनिया धारण करना फायदेमंद होता है।
- कुंडली में केतु शुभ भावों का स्वामी हो और उस भाव से छठे या आठवें स्थान पर बैठा हो तो भी लहसुनिया पहना जाता है।
- कुंडली में केतु पांचवे भाव के स्वामी के साथ हो या भाग्येश के साथ हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए।
- कुंडली में केतु धनेश, भाग्येश या चौथे भाव के स्वामी के साथ हो या उनके द्वारा देखा जा रहा हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए।
- केतु की महादशा और अंतरदशा में भी लहसुनिया धारण करना अत्यंत फलदायक होता है।
- केतु से संबंधित वस्तुओं और इससे संबंधित स्थानों में उन्नति के लिए भी लहसुनिया धारण करें।
- केतु अगर शुभ ग्रहों के साथ हो तो भी लहसुनिया धारण किया जाता है।
- भूत-प्रेत आदि से बहुत ज्यादा डर हो तो भी लहसुनिया पहन कर ऐसे डर को दूर किया जा सकता है।
- केतु से होने वाली जन्मदोष निवृत्ति के लिए भी लहसुनिया पहनना लाभदायक होता है।
शनिवार को चांदी की अंगूठी में लहसुनियां लगवाकर ऊं कें केतवे नम: मंत्र 17000बार जप करना चाहिए। इस प्रकार लहसुनिया को जागृत कर उसे धारण करना चाहिए। इसे आधी रात को बीच की अंगुली में धारण करना चाहिए।