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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्फटिक को धन की देवी लक्ष्मी जी का स्वरूप माना गया है। जिसे गले का हार के रूप में धारण किया जाता है।
स्फटिक निर्मल, रंगहीन, पारदर्शी, और शीत प्रभाव रखने वाला उप रत्न है। आयुर्वेद में स्फटिक का प्रयोग सभी प्रकार के ज्वर, पित्त प्रकोप, शारीरिक दुर्बलता एवं रक्त विकारों को दूर करने के लिए शहद या गौ मूत्र के साथ औषधि के रूप में किया जाता है।
ज्योतिष की दृष्टि से स्फटिक को पूर्ण विधि-विधान और श्रद्धाभाव के साथ गले में हार के रूप में धारण करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। इसके साथ ही हर तरह का विवाद और समस्या के अंत के साथ किसी भी तरह के शत्रु भय भी नहीं रहता है।
किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय यदि माता लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना करने के बाद स्फटिक की माला धारण करके जाया जाए तो वह कार्य आसानी से पूरा हो सकता है और उस कार्य में जरूर सफलता मिलेगी।