आखिर खुल ही गया समुद्र – मंथन में प्रयोग हुए पौराणिक मन्दराचल पर्वत का रहस्य!!

हिंदू धर्म में तो अनेक कथाएं है और हर कथा एक बहते ज्ञान की नदी की तरह है जिस से हम सबको कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है। उसमें से एक कथा है समुंद्र मंथन की जहां देवताओं और असुरों ने नागराज वासुकी और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुंद्र को मथा था और उसी मंथन से लक्ष्मी, चंद्रमा, अप्सराएं और भगवान धनवंतरि अमृत लेकर निकले थे।

लेकिन आज कुछ ऐसा समय है कि हिंदू धर्म को मानने वाले ही अपनी उन पुराणिक कथाओं को काल्पनिक समझते हैं, किंतु बहुत सारी हिंदू कथाएं ऐसी भी है जिनको विज्ञान खुद सत्य मानता है और उनमें से एक है समुद्र मंथन की कथा जिसका हाल ही में सत्य होने का प्रमाण मिला है।भागवत पुराण में समुद्र मंथन का उल्लेख मिलता है जिसमें देवताओं और असुरों द्वारा मन्दराचल पर्वत को आधार बनाकर नागराज वासुकि के माध्यम से छीरसागर का मंथन किया गया था | कहानी कुछ ऐसी है कि संत दुर्वासा ने देवराज इंद्र को एक माला भेंट की थी, लेकिन शक्ति और पद के गुमान में चूर इंद्र ने उस माला को नीचे फ़ेंक दिया था | तब संत दुर्वासा ने क्रोध में आकर इंद्र को समस्त देवलोक समेत शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया | मौका देखकर असुर लोक के राजा बाली ने देवलोक पर हमला कर दिया और इस प्रकार सारे ब्रह्माण्ड पर आधिपत्य जमा लिया | परेशान देवता भगवान् विष्णु के पास पहुंचे जिन्होंने देवताओं को खोयी हुई शक्ति वापस पाने के लिए अमृत पान का सुझाव दिया | अमृत सिर्फ छीरसागर के मंथन से ही प्राप्त हो सकता था और शक्तिहीन देवतागण अकेले ये कार्य नहीं कर सकते थे |विष्णु भगवान् के सुझाव पर सारे देवता असुर राज बाली से मिले और प्रलोभन देकर असुरों को समुद्र मंथन के लिए मना लिया | विशाल मन्दराचल पर्वत को मथनी बनाकर नागराज वासुकि की रस्सी बनायीं गयी | समस्या ये आई की अथाह छीरसागर में जब मंदराचल पर्वत को उतारा गया तब यह पर्वत डूबने लगा| कष्टहरता भगवान् विष्णु ने कच्छप अथवा कूर्म अवतार धारण कर पर्वत को आधार दिया और इस प्रकार छीरसागर का मंथन शुरू हुआ | बुद्धिहीन असुरों ने वासुकि का सर वाला हिस्सा पकड़ा और देवतों को पुंछ वाला हिस्सा मिला | विषैले नागराज की फुंकार मात्र ने असुरों का दिमाग चकरा दिया और असुर सही और गलत का निर्णय कर पाने में असमर्थ हो चुके थे |समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल विष निकला जिसके प्रभाव से समस्त ब्रह्माण्ड की जीव जंतु मरने लगे | तब भगवन शिव आगे आये और उन्होंने इस प्रचण्ड विष को अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ बन गए | पुनः समुद्र मंथन शुरू हुआ और कई खजाने और बहुमूल्य वस्तुएं निकलकर आईं जिनमे कामधेनु गाय, देवी लक्ष्मी, कल्पवृक्ष आदि थे | अंत में वैद्यराज धन्वन्तरि आयुर्वेद के साथ अमृत लेकर बाहर आये | अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में छीना झपटी शुरू हो गई और अंततः भगवन विष्णु को पुनः मोहिनी रूप में आना पड़ा | भ्रमित असुर भगवान् के इस मायाजाल को समझ नहीं पाए और भगवान् ने देवताओं को अमृत और असुरों को मदिरा पिला दी | इस प्रकार देवताओं को अपनी शक्तियां वापस मिली थीं और समुद्र मंथन समेत मन्दराचल पर्वत इतिहास बन गए |

कई लोगों को शायद हमारे वेदो और पुराणों की बातें भले ही काल्पनिक क्यों ना लगती हों किन्तु लाखों वर्षों के बाद भी कई ऐसे प्रमाण मिल जाते हैं जो इन घटनाओं को सत्य साबित कर देते हैं |

इस पर्वत का मितुल त्रिवेदी ने, जो की सूरत के आर्केलॉजिस्ट है, जब कार्बन टेस्ट किया तो नतीजे चौका देने वाले निकले। समुंद्र में पाए जाने वाले पर्वतो से बहुत भिन्न था। इस पर्वत की खोज असल में 1988 में हुई थी तब डॉ. एस.आर.राव इस साइट पर शोध कर रहे थे और मितुल त्रिवेदी उनके सहयोगी थे। पर तब शोध चल रहा था और इस बात की पुष्टि नहीं हुई थी की यह समुंद्र मंथन वाला पर्वत है। इस पर्वत पर गहन अध्यन करने के बाद इस बात की पुष्टि की गयी की यह समुन्द्र मंथन वाला ही पर्वत है। इस पर्वत में ग्रेनाइट की मात्रा भी अधिक पाई गयी है जो इसे समुंद्र के बाकी पर्वतो से भिन्न करता है।

मन्दराचल पर्वत के बारे में सूरत के आॉर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी का कहना है की सामन्यतः ऐसे पर्वत समुद्र के अंदर नहीं पाये जाते और कार्बन डेटिंग से इस चट्टान की आयु लाखों वर्ष पुरानी निकली है | इस विशाल चट्टान के बीच में किसी मोटी रस्सी से घिसे जाने जैसे निशान भी हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि ये पर्वत पौराणिक मन्दराचल पर्वत भी हो सकता है | ओशनोलॉजी विभाग ने यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर 50 मिनट का एक वीडियो जारी कर शेयर की है |

ओशोनोलॉजी डिपार्टमेंट भी इस खोज से बेहद उत्साह में है और उन्होंने इस पर्वत की पुष्टि अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी साँझा की।

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