आषाढ़ माह की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक साल में 24 एकादशी होती हैं। एक महीने में दो एकादशी आती हैं। सभी एकादशी में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन के धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्री हरि राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ लौटे थे। इसके साथ इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है।
वैसे तो रोजाना तुलसी के पौधे को जल चढ़ाएं लेकिन इस दिन विशेषकर ये प्रक्रिया करें और तुलसी के आगे दीया-बाती अवश्य करें। एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त देखकर तुलसी के विवाह के लिए मंडप सजाएं। गन्नों को मंडप के चारों तरफ खड़ा करें और नया पीले रंग का कपड़ा लेकर मंडप बनाए। इसके बीच हवन कुंड रखें। मंडप के चारों तरफ तोरण सजाएं। इसके बाद तुलसी के साथ आंवले का गमला लगाएं। तुलसी का पंचामृत से पूजा करें। इसके बाद तुलसी की दशाक्षरी मंत्र से पूजा करें।
दशाक्षरी मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा।
इस वर्ष देवउठानी एकादशी 31 अक्टूबर 2017 यानि मंगलवार को है। इस दिन के लिए कई मान्यताएं हैं जिन्हें शुभ मुहूर्त में किया जाए तभी उनका अर्थ होता है। एकादशी की तिथि सोमवार यानि 30 अक्टूबर शाम 7 बजकर 03 मिनट से लग जाएगी। जो लोग व्रत करने वाले हैं वो इस समय के बाद अन्न ग्रहण नहीं कर सकते हैं। एकादशी की तिथि का समय 31 अक्टूबर 6 बजकर 55 मिनट तक रहेगा। जो लोग व्रत कर रहे हैं वो अवश्य ध्यान रखें कि अगले दिन पाराण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करें। पारण करने का शुभ समय 1 नवंबर को सुबह 06 बजकर 37 मिनट से शुरु होकर सुबह के 08 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।