पक्षियों में श्रेष्ठ हंस को माना जाता है। हिन्दू धर्म में इसे बहुत विवेकी और शांत चित्त पक्षी माना गया है। हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। कहते हैं कि यह पानी और दूध को अलग करने की क्षमता रखता है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। इसका मूल निवास स्थान कैलाश मानसरोवर है। ये पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे।
यह पक्षी दांपत्य जीवन के लिए आदर्श है। ये जीवनभर एक ही पार्टनर के साथ रहते हैं। यदि दोनों में से किसी भी एक पार्टनर की मौत हो जाए तो दूसरा अपना पूरा जीवन अकेले ही गुजार या गुजार देती है। जंगल के कानून की तरह इनमें मादा पक्षियों के लिए लड़ाई नहीं होती। आपसी समझबूझ के बल पर ये अपने साथी का चयन करते हैं। इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती हैं।
सफेद रंग के अलावा काले रंग के हंस ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। हिन्दू धर्म में हंस को मारना अर्थात पिता, देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।
परमहंस : जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है।
आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य के नि:श्वास में ‘हं’ और श्वास में ‘स’ ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही ‘हंस’ है, क्योंकि उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस ‘ज्ञान’ विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है।
पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है, जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना है जिन्होंने अपने जीवन में पुण्य-कर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है।
हंस योग : हंस योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार बृहस्पति अर्थात गुरु यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केंद्र के घरों में स्थित हों अर्थात बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को सुख, समृद्धि, संपत्ति, आध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान कर सकता है।
हंस योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल बृहस्पति की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में हंस योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होते हैं।