षष्ठ भाव में शनि
इस भाव मे शनि कितने ही दैहिक दैविक और भौतिक रोगों का दाता बन जाता है, लेकिन इस भाव का शनि पारिवारिक शत्रुता को समाप्त कर देता है,मामा खानदान को समाप्त करने वाला होता है,चाचा खान्दान से कभी बनती नही है। व्यक्ति अगर किसी प्रकार से नौकरी वाले कामों को करता रहता है तो सफ़ल होता रहता है, अगर किसी प्रकार से वह मालिकी वाले कामो को करता है तो वह असफ़ल हो जाता है। अपनी तीसरी नजर से आठवें भाव को देखने के कारण से व्यक्ति दूर द्रिष्टि से किसी भी काम या समस्या को नही समझ पाता है, कार्यों से किसी न किसी प्रकार से अपने प्रति जोखिम को नही समझ पाने से जो भी कमाता है, या जो भी किया जाता है, उसके प्रति अन्धेरा ही रहता है, और अक्स्मात समस्या आने से परेशान होकर जो भी पास मे होता है गंवा देता है। बारहवे भाव मे अन्धेरा होने के कारण से बाहरी आफ़तों के प्रति भी अन्जान रहता है, जो भी कारण बाहरी बनते हैं उनके द्वारा या तो ठगा जाता है या बाहरी लोगों की शनि वाली चालाकियों के कारण अपने को आहत ही पाता है। खुद के छोटे भाई बहिन क्या कर रहे हैं और उनकी कार्य प्रणाली खुद के प्रति क्या है उसके प्रति अन्जान रहता है। अक्सर इस भाव का शनि कही आने जाने पर रास्तों मे भटकाव भी देता है, और अक्सर ऐसे लोग जानी हुई जगह पर भी भूल जाते है।
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